
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डा. सुधांशु त्रिवेदी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति
चुनाव के अंतिम चरण आते-आते हमारे विपक्षियों द्वारा हताशा, निराशा और निश्चित पराजय को देखकर राजनीतिक आक्रमण की निम्नता भी नए आयामों तक पहुंच रही है। हमारे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेंद्र मोदी जी के व्यक्तिगत जीवन, प्रारंभिक पृष्ठभूमि और सांप्रदायिक विषय से होते हुए आक्रमणों का सिलसिला अंत में, जाति के विषय तक हमारे विरोधियों ने पहुंचा दिया है।
इस संदर्भ में, हम कहना चाहते हैं कि हमारे राजनीतिक विरोधियों, जिसमें कांग्रेस और अन्य तथाकथित ‘सेक्युलर’ दल शामिल हैं, सब इस अभियान में शामिल हैं। सब तरफ से पराजित होने के बाद वे इस हथकंडे पर आए हैं।
सबसे पहले तो ये राजनीतिक दृष्टि से तब पराजित हो गए, जब 6 महीने पूर्व राज्य विधानसभा के चुनावों में, भाजपा ने शानदार सफलता हासिल की ।
तब उन्होंने दूसरा हथियार निकाला और कहा कि मोदी जी सांप्रदायिक हैं, अतः श्री मोदी जी के नेतृत्व में सहयोगी दल शामिल नहीं होंगे। यथार्थ यह है कि एनडीए के साथ आज 25 सहयोगी दल शामिल हैं, जो भारत के इतिहास में, किसी भी दल के साथ चुनाव पूर्व का सबसे बड़ा गठबंधन है।
जब संाप्रदायिकता विषय पर असफल हो गए तो फिर इन्होंने तीसरा मुद्दा उनके निजी जीवन के संदर्भ में उठाया।
सामाजिक उद्देश्यों के लिए निजी जीवन के परित्याग करने के आदर्श का माखौल उड़ाया गया और यह संयोग ही था कि यह माखौल उड़ाने में जो अग्रणी नेता थे, वे स्वयं ही किसी प्रेम के मोह-पाश में पड़े हुए दिखाए दिए।
जब यह विषय भी विफल रहा तो चैथा विषय स्नूपगेट का उठाया गया जिसमें भरसक प्रयत्न करने के बाद भी सरकार जांच गठित करने में असफल रही और उसे अंततः न्यायालय से कहना पड़ा कि वह अब इस विषय पर जांच करने में सक्षम नहीं है।
इन चारों विषयों पर चारों खाने चित्त होने के बाद अब हमारे विरोधियों ने जाति का विषय निकाला है। कांग्रेस उपाध्यक्ष श्री राहुल गांधी ने बड़े ही गंभीर अंदाज में कहा था कि नीच जाति नहीं बल्कि कर्म नीच होते हैं। आज उनकी पार्टी मोदी जी के कर्म को नहीं बल्कि जाति को मुद्दा बना रही है तो उनका यह कार्य उच्च श्रेणी में आता है अथवा निम्न श्रेणी में आता है, इसका निर्णय जनता करेगी।
जाति के संदर्भ में, हमारा यह भी कहना है कि सबसे पहले श्री मोदी जी की जाति का विषय बसपा अध्यक्ष सुश्री मायावती जी ने उठाया। कांग्रेस आज मायावती जी के सुर में सुर मिला रही है। उस पार्टी के साथ सुर मिला रही है जिसने जातिगत विद्वेष की राजनीति की पराकाष्ठा भारत की राजनीति में स्थापित की जिन्होंने अपनी राजनीति का प्रारंभ तिलक-तराजू-तलवार जैसे नारों के साथ किया। उन दलों के साथ सुर में सुर मिलाकर आज जाति का प्रश्न उठाना यह दर्शा रहा है कि कांग्रेस किस सीमा तक जाकर और किस प्रकार के लोगों की ओट लेकर व्यक्तिगत आक्रमण करने के प्रयास कर रही है।
तथ्यात्मक पक्ष यह है कि मोदी जी की जाति के संदर्भ में, गुजरात सरकार द्वारा ओबीसी में शामिल करने की सिफारिश 25 जुलाई, 1994 को की गई थी। उस समय गुजरात में कांग्रेस की सरकार थी, श्री छबिलदास मेहता मुख्यमंत्री थे और आरोप लगाने वाले श्री शक्ति सिंह वघेल स्वयं उस सरकार में मंत्री थे। मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद, भारत सरकार ने मंडल की सिफारिशों के तहत 4 अप्रैल, 2000 को शामिल किया गया। 1994 में भाजपा सत्ता में नहीं थी और 4 अप्रैल 2000 में मोदी जी न तो मंत्री थे, न सांसद और न ही विधायक थे। अतः पद के दुरूपयोग करने का आरोप तथ्यों के आधार पर सर्वथा विपरीत है।
भाजपा और संघ परिवार के लोगों के विषय में यह विदित तथ्य है कि जाति का विषय संगठन और परिवार में नहीं पूछा जाता। जो लोग इस परंपरा से जुड़े हैं, उन्हें पता है कि हमारे यहां सामान्यतः व्यक्ति का उपनाम तक नहीं पूछा जाता है। हम भारत के सामाजिक परिवेश में उस परंपरा से प्रेरणा लेते हैं और दूसरे वे हैं जो तिलक-तराजू और तलवार वालों के समर्थन का प्रतिनिधित्व करते हैं।
हकीकत यह है कि कांग्रेस द्वारा इस प्रकार का प्रयास, विकास के संदर्भ में हाल ही में भारत सरकार ने जो रिपोर्टें दी हैं, उसे छिपाने के लिए, योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा है। कांग्रेस नेताओं ने अनेकों बार आरोप लगाया कि गुजरात में विकास के नाम पर कुछ नहीं हुआ। हाल ही में वाणिज्य मंत्रालय ने गुजरात को भूमि अधिग्रहण संबंधी मुद्दे सुलझाने में देश का अव्वल राज्य माना है। विनिर्माण और लघु उद्योगों के बारे में योजना अयोग ने गुजरात की प्रशंसा की है। इसके अतिरिक्त, केंद्र सरकार का 20-सूत्रीय कार्यक्रम लागू करने में गुजरात लगातार तीन वर्षों तक अव्वल राज्य रहा। केंद्र का एक सर्वे रिपोर्ट यह दर्शाती है किपिछले कुछ वर्षों में 72 फीसदी नए रोजगार सृजित करने वाला एकमात्र राज्य गुजरात रहा। सौर उर्जा सृजन में गुजरात देश का अग्रणी राज्य है, जिसकी तारीफ केंद्र सरकार ने भी की है। नवीन और पुनर्नवीकृत ऊर्जा मंत्री ने भी सौर ऊर्जा के क्षेत्र में गुजरात सरकार की पहल को देश को नई राह दिखाने वाला बताया था। बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की गुणवत्ता जांच के लिए गुजरात सरकार द्वारा 2009 में आरंभ की गई पहल की प्रशंसा केंद्र सरकार ने भी की और अन्य राज्यों को भी इसका अनुकरण की सलाह दी।
अल्पसंख्यकों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर अध्ययन के लिए प्रधानमंत्री द्वारा गठित जस्टिस सच्चर कमेटी सच्चर कमेटी जिसकी चर्चा काफी होती है, इसने भी अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि देश के अन्य भागों की तुलना में गुजरात में मुस्लिम ज्यादा बेहतर स्थिति में हैं। नेशनल काउंसिल आॅफ एप्लायड इकाॅनोमिक रिसर्च भी मानती है कि गुजरात में मुसलमानों की स्थिति देश के अन्य राज्यों से बेहतर है। उनके मुताबिक प. बंगाल के 25 फीसदी मुसलमानों में केवल 2.1 फीसदी के पास सरकारी नौकरी है, जबकि गुजरात में 9.1 प्रतिशत मुसलमानों में 5.4 फीसदी सरकारी कर्मचारी हैं। भारत के अन्य राज्यों की अपेक्षा गुजरात के मुसलमानों की प्रतिव्यक्ति आय सबसे अधिक है। एक राष्ट्रीय दैनिक की खबरों के अनुसार, देश के सभी राज्यों की तुलना सर्वाधिक मुस्लिम पुलिसकर्मियों को नियुक्त करने वाला गुजरात प्रथम राज्य है। ये तथ्य प्रमाणित करने के लिए काफी हैें कि आर्थिक स्थिति ही नहीं बल्कि सरकारी व्यवस्थाओं में भी किस सरकार ने कितनी ईमानदारी से अल्पसंख्यक समुदाय को स्थान दे रखा है।
इन सारी चीजों से जनता का ध्यान बंटाने के लिए और जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए, गलत तथ्यों के आधार पर जात-बिरादरी का विषय विपक्षी पार्टियांे द्वारा खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है।
हमें विश्वास है कि देश की जनता इस सबसे अप्रभावित रह कर मोदी जी के शानदार कार्यों के आधार पर जात बिरादरी से ऊपर उठकर विकास के नए मार्ग पर भारत को ले जाने के लिए निर्णायक जनादेश देने का मन बना चुकी है।
(इंजी. अरूण कुमार जैन)
कार्यालय सचिव
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