Salient points of the joint press conference : BJYM National President Shri Tejasvi Surya (MP), Shri P.C. Mohan (MP), Capt. Brijesh Chowta (MP) & Dr. CN Manjunath (MP)


द्वारा श्री तेजस्वी सूर्य -
17-03-2025
Press Release

 

भाजपा सांसद एवं भाजपा जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री तेजस्वी सूर्या, सांसद श्री पीसी मोहन, कैप्टन बृजेश चौटा और डॉ सीएन मंजूनाथ की संयुक्त प्रेस वार्ता के मुख्य बिन्दु

 

सिद्धारमैया सरकार द्वारा केटीपीपी अधिनियम में संशोधन कर मुस्लिम ठेकेदारों को 4% आरक्षण देने का प्रस्ताव, असंवैधानिक और संविधान निर्माताओं के सिद्धांतों के खिलाफ है।

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पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल से ही कांग्रेस लगातार मुसलमानों का तुष्टीकरण करती रही है। बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर ने नेहरू की तुष्टीकरण नीति का कड़ा विरोध किया था।

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उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बार-बार धर्म आधारित आरक्षण को अंसवैधानिक ठहराए जाने के बावजूद सिद्धारमैया सरकार ने जानबूझकर अपने वोटबैंक के तुष्टीकरण के लिए यह कदम उठाया है।

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मुस्लिम ठेकेदारों को 4% आरक्षण देने का यह निर्णय राहुल गांधी सहित कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के इशारों पर लिया जा रहा है।

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राहुल गांधी देशभर में घूमकर वही विचार दोहरा रहे थे, जो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुस्लिम अल्पसंख्यकों का है। यही सोच कर्नाटक के बजट में भी झलकती है।

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एक ओर कांग्रेस खुद को डॉ. अंबेडकर के आदर्शों और पिछड़े वर्गों के कल्याण की समर्थक बताती है, दूसरी ओर कांग्रेस की नीतियां उन्हीं सिद्धांतों के विरुद्ध जाकर उनके हक के आरक्षण को छीनती हैं।

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आखिर "अल्पसंख्यक बस्ती" क्या है? और इसके विकास के लिए ₹1,000 करोड़ का अलग बजट क्यों? क्या एक संविधान और एक कानून से शासित देश को मुस्लिम अल्पसंख्यक बस्तियों के आधार पर विभाजित किया जा सकता है? क्या यही धर्मनिरपेक्षता है?

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धर्म आधारित आरक्षण का विरोध करते हुए बाबा साहब अंबेडकर ने यह चेतावनी दी थी कि धर्म के आधार दिया गया आरक्षण भारत के विभाजन का कारण बन सकता है।

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अगर सरकार ही किसी शहर या राज्य को धार्मिक आधार पर अलग-अलग हिस्सों में बांटते रहेंगे, तो देश की एकता कहाँ बचेगी?

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भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से सवाल पूछे कि आखिर "अल्पसंख्यक बस्ती" क्या है? और इसके विकास के लिए ₹1,000 करोड़ का अलग बजट क्यों रखा गया है? अगर यह मुस्लिम बस्ती बसाना नहीं है, तो और क्या है? क्या एक संविधान और एक कानून से शासित देश को मुस्लिम अल्पसंख्यक बस्तियों के आधार पर विभाजित किया जा सकता है? क्या यही धर्मनिरपेक्षता है? सरकार धार्मिक आधार पर बजट आवंटित कब से करने लगी?

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भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री तेजस्वी सूर्या, सांसद श्री पी.सी. मोहन, कैप्टन बृजेश चौटा एवं डॉ. सीएन मंजूनाथ ने आज सोमवार को नई दिल्ली स्थित भारतीय जनता पार्टी के केन्द्रीय कार्यालय में प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए कर्नाटक की कांग्रेस सरकार द्वारा सरकारी टेंडरों में मुसलमानों के लिए 4% आरक्षण देने की जमकर आलोचना की। श्री सूर्या ने कहा कि कांग्रेस खुद को पिछड़ों का संरक्षक और बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर की विरासत का रक्षक बताती है, मगर कांग्रेस की नीतियां उनके विचारों के विरुद्ध है। भाजपा इस असंवैधानिक आरक्षण के मुद्दे को संसद में उठाएगी, विधानसभा में इसका विरोध करेगी और अदालत में इसे कानूनी रूप से चुनौती देगी।

 

श्री सूर्या ने कहा कि सिद्धारमैया सरकार ने पिछले सप्ताह पेश किए गए बजट में केटीपीपी अधिनियम में संशोधन कर सरकारी निविदाओं में मुस्लिमों को 4% आरक्षण देने का प्रस्ताव रखा। यह कदम केवल स्पष्ट रूप से असंवैधानिक है, बल्कि संविधान निर्माताओं द्वारा स्थापित उन सिद्धांतों के भी विरुद्ध है, जिन्होंने संविधान निर्माण के दौरान ऐसे प्रावधानों को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया था। यह विचार बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर के विचारों के विरुद्ध है, जो भारत के विभाजन की संभावना पैदा करता है। भाजपा इस असंवैधानिक प्रस्ताव का कड़े शब्दों में विरोध करती है और सिद्धारमैया सरकार से मांग करती है कि वह इस असंवैधानिक और अव्यवहारिक निर्णय को तुरंत वापस ले।

 

भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सूर्या ने कहा कि यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस पार्टी ने अपने वोट बैंक की राजनीति के लिए इस तरह के कदम उठाए हैं। पंडित नेहरू के कार्यकाल से ही कांग्रेस लगातार मुस्लिम अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण करती रही है, जिससे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग उपेक्षित होते रहे हैं। बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर ने संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह पंडित जवाहर लाल नेहरू की तुष्टीकरण नीति का कड़ा विरोध किया था। अपने एक संसदीय भाषण में डॉ. अंबेडकर ने नेहरू की आलोचना करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री सिर्फ मुस्लिमों के बारे में सोचते हैं, जबकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कल्याण की पूरी तरह अनदेखी करते हैं। यह ट्रेंड आज भी जारी है, जहां कांग्रेस सरकार है वहां हर अन्य समुदाय और पिछड़े वर्गों की अनदेखी कर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हितों को प्राथमिकता दे रहा है। राज्यों उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि केवल धर्म के आधार पर दिया गया आरक्षण असंवैधानिक है। इसके बावजूद, सिद्धारमैया सरकार ने जानबूझकर इस असंवैधानिक कदम को आगे बढ़ाया है, जो उनके वोट बैंक को साधने की सुनियोजित कोशिश का हिस्सा है। यह निर्णय कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व, विशेष रूप से राहुल गांधी के सीधे संरक्षण और निर्देश में लिया जा रहा है।

 

श्री सूर्या ने कहा कि लोकसभा चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले राहुल गांधी देशभर में घूमकर वही विचार दोहरा रहे थे, जो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पहले व्यक्त किया था कि अल्पसंख्यकों का देश के संसाधनों पर पहला और विशेष अधिकार है। यही सोच कर्नाटक के बजट में भी झलकती है, खासकर राहुल गांधी के बयान "जितनी आबादी, उतना हक"। श्री सूर्या ने सिद्धारमैया सरकार के धर्मनिरपेक्षता बनाए रखने के दावे पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या यही वह धर्मनिरपेक्षता है, जिसकी परिकल्पना संविधान और बाबा साहेब अंबेडकर ने की थी, जहां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए निर्धारित आरक्षण लाभ मुस्लिमों को दिए जा रहे हैं? एक ओर कांग्रेस खुद को डॉ. अंबेडकर के आदर्शों और पिछड़े वर्गों के कल्याण की समर्थक बताती है, जबकि दूसरी ओर उसकी नीतियां उन्हीं सिद्धांतों के खिलाफ जाती हैं।

 

भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सूर्या ने कहा कि जब संविधान निर्माण के दौरान धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण देने का विचार प्रस्तुत किया गया था, तो बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर ने इसका कड़ा विरोध किया था। 1949 में संविधान सभा में इस विषय पर बहस के दौरान, बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा था कि "धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों के लिए सीटों का आरक्षण देश के लिए घातक साबित होगा।" धर्म के आधार पर देश को विभाजित करना बेहद खतरनाक है और यह राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए शुभ संकेत नहीं है। आरक्षण का उद्देश्य उन समुदायों के हितों की रक्षा करना है, जो ऐतिहासिक रूप से भेदभाव और सामाजिक अन्याय का शिकार रहे हैं। धर्म को पिछड़े वर्गों के निर्धारण का आधार नहीं बनाया जा सकता। बाबा साहेब अंबेडकर ने यह भी पूछा था कि यदि धार्मिक पहचान के आधार पर पृथक निर्वाचन और सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व इतने ही आवश्यक थे, तो मुस्लिमों ने इसे मिंटो-मॉर्ले सुधारों या मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के दौरान क्यों नहीं मांगा? डॉ अंबेडकर ने यह स्पष्ट किया था कि आरक्षण केवल उन्हीं अल्पसंख्यक समुदायों तक सीमित रहना चाहिए, जिन्हें व्यवस्थित रूप से भेदभाव का सामना करना पड़ा। बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर ने यह चेतावनी भी दी थी कि धर्म के आधार पर दिया गया, तो वह आरक्षण भारत के विभाजन का कारण बन सकता है।

 

श्री सूर्या ने कहा कि यह दर्शाता है कि धर्म के आधार पर आरक्षण का विरोध बाबासाहेब डॉ अंबेडकर के समय में भी कितना मजबूत था। एक ओर कांग्रेस पार्टी खुद को पिछड़े वर्गों की संरक्षक, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अधिकारों की स्वघोषित संरक्षक और बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर की विरासत की रक्षक बताती है, लेकिन वास्तविकता में उनकी राजनीति कुछ और ही है। पहले भी कांग्रेस इसी तरह की राजनीति कर चुकी है। 2004 में, कांग्रेस के नेतृत्व वाली आंध्र प्रदेश सरकार ने सरकारी टेंडरों में मुस्लिमों के लिए 4% आरक्षण का प्रस्ताव रखा था, लेकिन आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया। यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में लंबित है। इसी तरह का प्रयास पश्चिम बंगाल में भी किया गया था, लेकिन पश्चिम बंगाल हाईकोर्ट ने भी इसे रद्द कर दिया। यह मामला भी वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

 

भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सूर्या ने कहा कि यह स्पष्ट रूप से असंवैधानिक और प्रथम दृष्टया अवैध कदम अदालत में चुनौती दिया जाएगा। भारतीय जनता पार्टी इस निर्णय का विधानसभा के अंदर और सड़कों पर जोरदार विरोध करेगी। हम इस मुद्दे को संसद में उठाएंगे और इसके खिलाफ सड़क पर भी प्रदर्शन करेंगे। हमारी लड़ाई अदालतों तक जाएगी और इसे कर्नाटक की जनता तक भी लेकर जाएंगे। जब तक यह असंवैधानिक कदम वापस नहीं लिया जाता, भाजपा का संघर्ष जारी रहेगा। यह केवल अवैध और असंवैधानिक है, बल्कि बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर के शब्दों में, भारत के विभाजन की नींव रखने वाला कदम भी साबित हो सकता है।

 

श्री सूर्या ने कहा कि यह राष्ट्रीय एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए गंभीर खतरा है। सिद्धारमैया सरकार ने बजट में अल्पसंख्यक-विशेष योजनाओं के लिए अलग से प्रावधान किए हैं, जो पूरी तरह असंवैधानिक हैं। जहां वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए ₹150 करोड़ आवंटित किए गए हैं, वहीं कर्नाटक में अवैध रूप से कब्जा की हुई वक्फ संपत्तियों पर एक भी शब्द नहीं कहा गया। यह तब है जब राज्य के हजारों किसान महीनों से वक्फ संपत्तियों द्वारा किए गए अवैध अतिक्रमण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। अल्पसंख्यक बस्तियों के विकास के लिए ₹1,000 करोड़ का विशेष बजट रखा गया है, जो पक्षपातपूर्ण नीति को दर्शाता है।

 

भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सूर्या ने कहा कि हमें मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से पूछना चाहिए आखिर "अल्पसंख्यक बस्ती" क्या है? और इसके विकास के लिए ₹1,000 करोड़ का अलग बजट क्यों रखा गया है? अगर यह मुस्लिम बस्ती बसाना नहीं है, तो और क्या है? क्या एक संविधान और एक कानून से शासित देश को मुस्लिम अल्पसंख्यक बस्तियों के आधार पर विभाजित किया जा सकता है? क्या यही धर्मनिरपेक्षता है? सरकार धार्मिक आधार पर बजट आवंटित कब से करने लगी? कर्नाटक सरकार मुस्लिम क्षेत्रों के विकास के लिए ₹1,000 करोड़ विशेष रूप से खर्च कर रही है। अगर हम इसी तरह किसी शहर या राज्य को धार्मिक आधार पर अलग-अलग हिस्सों में बांटते रहेंगे, तो देश की एकता कहाँ बचेगी?

 

भाजपा सांसद एवं भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सूर्या ने कहा कि इस असंवैधानिक कदम का विरोध केवल राजनीतिक दलों को ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया को भी करना चाहिए। राज्य सरकार के इस फैसले की व्यापक रूप से निंदा हो रही है, और भारतीय जनता पार्टी इसे पूरी तरह अस्वीकार करती है। हम आने वाले दिनों में इस मुद्दे को संसद में उठाएंगे, राज्य विधानसभा में विरोध करेंगे और इसे अदालत में कानूनी रूप से चुनौती देंगे। भाजपा सुनिश्चित करेगी कि बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर के संविधान के साथ किए जा रहे इस खुलेआम खिलवाड़ को पूरी तरह खत्म किया जाए और यह फैसला वापस लिया जाए।

 

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